कबीर साहब और गोरख नाथ की गोष्ठी
सद्गुरु कबीर साहब और योगी गोरखनाथ की गोष्ठी (संवाद के रूप में)
सद्गुरु कबीर साहब और गोरखनाथ से भी गोष्ठी हुई,वह संवाद के रूप में तथा कुछ चमत्कार को लेकर हुई। तत्कालीन योगियों में गोरखनाथ बड़े सिद्ध, साधक, चमत्कारी, प्रभावी तथा योगिनिष्ठ थे। समस्त संसार के योगी इन्हें अपना आदि गुरु मानते हैं इनके प्रभाव से गोपीचंद राजा तथा राजा भर्तृहरि ने संन्यास लेकर ख्याति प्राप्त की थी। गोरखनाथ के गुरु मछिन्द्रनाथ तथा जालंधर नाथ थे।
गोरखनाथ जी की शिष्यों में भर्तृहरि का नाम उल्लेखनीय है। गोरखनाथ को अपनी योग साधना तथा ज्ञन पर बड़ा गर्व था। गोरखनाथ भगवान शिव (शंकर) को इष्ट मानता था। शिव हाजारा हुजूर थे। कई जीवों इनके प्रभाव में आए।गोरखनाथ का स्वभिमान चुर करने तथा जिवों को इनके फन्दे से बचाने एवं गोरखनाथ को मुक्त करने के उद्देश्य को लेकर सद्गुरु कबीर साहब प्रगट हुए।
गोरखनाथ ने सद्गुरु कबीर साहब का सम्मान किया और आने का कारण पूछा। कबीर साहब ने कहा ऐ! गोरख मैं सत्य लोक से आया हूं और सत्यपुरूष ने मुझे आप लोगों को चेतावनी देने भेजा है ध्यान हीन?कि काल माया के फन्देतुम उलझन हो। तुम्हारा अलख निरंजन,शिव ब्रम्हामायावश है। तुम्हारी योग युक्ति की इन्हीं तक है तुम्हे सत्यपुरुष का बोध नहीं है। गोरखनाथ ने कबीर साहब से ऐसी वार्ता सुनीं तो वह बड़ा क्रोध हुआ क्योंकि उसे शिव शक्ति, निरंजन सामथ्य योग सिद्धि तथा अपने ज्ञान पर गर्व था अब गोरखनाथ सदगुरू कबीर साहब से कहने लगे -
.आदिनाथ की नाथ मछिन्दर उनका हु मैं पुत।
गोरख मेरा नाम है,मारग है अबधुत।
. सुषमनि सांपिन मैं वशकीना।
बंक नाल गहि मारग लीना।
. सहस्त्र पंखुरो कमल अनुपा।
बसे नरिजंन ज्योति स्वरुपा।
.यही ध्यान युग युग चली आवा।
तुम यह कौन मति उठावा।
तब सदगुरु कबीर साहब गोरखनाथ से कहने लगे। हे गोरख निरं माया वश हैं तथा जन तो शिव ब्रम्हादि योगादि सब काल माया वश हैं
. धोखे गोरख तुम भय, मुद्रा पहरि कान।
कहां मिलोगे पिव सों जब पिण्ड तजोगे प्रान
इस प्रकार शास्त्रर्थ (वाद-विवाद) में गोरखनाथ की एक भी नहीं चली।तब चमत्कार गोरखनाथ उतारू होते हुए त्रिशूल गाड कर उसके ऊपर बैठ गए।
तब कबीर साहब उससे भी ऊपर सुत के कच्चे डोरे को आसमान की तरफ फेंक कर अधर आसन मारकर बैठ गऐ। तब गोरखनाथ देखते रह गए। फिर गोरखनाथ कबीर साहब से कहा कि मुझे आप जल में ढूंढो अौर गोरखनाथ जल में डुबकी मार कर मछली की रूप धारण कर लिया थोड़ी ही देर बाद कबीर साहब उसे जल में से पकड़ लिया। फिर तो गोरखनाथ अपना रूप धारण कर कबीर साहब के चरणों में गिर पड़े और अपने कल्याण के लिए वन्दना करने लगे।
सद्गुरु कबीर साहब ने गोरखनाथ की सद्भाव देखा अौर उपदेश दिया। अपने उपदेश में सदगुरू कबीर साहब गोरखनाथ जी से कहते हैं कि--
. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
जो तूं सींचे मूल को, फूले फलै अधाय।।
.घट में बोलता ब्रम्हा है,ताको मरम ना जान।
कर्ता आप सोई है, दूर करै नर ज्ञान।।
. गोरख आप संभारहू, लखो आप में आप।
स्थिर होवो आप में, तो दुसरा पाप।
. धूसर आशा छोड़ के, अविचल राखु शरीर।
अनंत कला है आप में सोहा सत कबीर।।
इतना सुनकर गोरखनाथ धन्य धन्य हो गए।सद्गुरु गोरखनाथ को मुक्ति भेद, सत्यलोक दर्शन तथा सार शब्द दे दिया तब तो गोरखनाथ अत्यंत प्रसन्न होकर सद्गुरु की वंदना करने लगे और कहा -
. टोपी कोपीन कूबरी, झोली झंडा साथ।
दया करी कबीर ने, चढ़ाई गोरखनाथ।।
.घट में बोलता ब्रम्हा है,ताको मरम ना जान।
कर्ता आप सोई है, दूर करै नर ज्ञान।।
. गोरख आप संभारहू, लखो आप में आप।
स्थिर होवो आप में, तो दुसरा पाप।
. धूसर आशा छोड़ के, अविचल राखु शरीर।
अनंत कला है आप में सोहा सत कबीर।।
इतना सुनकर गोरखनाथ धन्य धन्य हो गए।सद्गुरु गोरखनाथ को मुक्ति भेद, सत्यलोक दर्शन तथा सार शब्द दे दिया तब तो गोरखनाथ अत्यंत प्रसन्न होकर सद्गुरु की वंदना करने लगे और कहा -
. टोपी कोपीन कूबरी, झोली झंडा साथ।
दया करी कबीर ने, चढ़ाई गोरखनाथ।।
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