Why Kabir is real god, who is sadguru Kabir saheb,full biography of Shri sadguru Kabir saheb. सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग,कलयुग, के बारे (the god Kabir) ब्रम्हा, विष्णु, शंकर,काल नरिजंन (यंम),अष्टंगि (दुर्गा), ईसा मसीह, और मोहम्मद
सत्पुरुष की सुषुप्त इच्छा के स्फुरण स्वरुप सोलाहसुत व इनके लोक
इस पिण्ड ब्रमान्ड की रचना से पहले सत्यपुरुष (परमात्मा) था आज भी है।
तथा प्रलय के बाद भविष्य में भी रहेगा।
आदी में सतपुरुष(परमात्मा) ही था सिवाय शुन्य के असंख्य वर्ग योजन के क्षेत्र में कुछ नहीं था।
अगर थी भी तो केवल सत्यपुरुष (परमात्मा) आकर नाम की कोई चिन ही नहीं थी।
सत्यपुरुष( परमात्मा) स्वयं निराकार सत्य स्वरुप में इस विशाल शुन्य में विद्ममान था।
लेकिन इस सत्यपुरुष (परमात्मा) के अन्तरंग में इच्छा शक्ति जाग्रत थी।
जिसके फलस्वरूप शब्द स्वरूप सोलह सुतो पुत्र का निर्माण हुआ।
यानि सत्यपुरुष ने ही शब्द स्वरुप निराकार सोलह (पुत्रो) की रचना की ओर इनके लिए सोलह शब्द लोको की भी स्थापना करके इन्हें क्रमशः अपने अपने लोक में प्रकाशित किया।
जिनके नाम व लोक निम्नलिखित हैं।
अंश या (सुत) (लोक) अथवा द्वीप
1) सहज अंश(सुत) मूल करी द्वीप(लोक)
2 ) सुजन जन अंश (सुत) अग्रा द्वीप(लोक)
3 ) भृीन्गमुनि अंश(सुत) मंजुल करी द्वीप (लोक)
4 ) पक्ष पालन अंश (सुत) पुहुप द्वीप (लोक)
5 ) श्रवण लीला अंश (सुत) जगमग द्वीप (लोक)
6 ) सर्वग सुरत अंश (सुत) अचींत द्वीप(लोक)
7 ) भावनाम अंश (सुत) उदय द्वीप (लोक)
8 ) प्रेम अंश अथवा (निरंजन काल अंश सुत) झांझरी द्वीप (लोक)
9 ) कुर्म अंश (सुत) (सत्यलोक)
10 ) सुरत सुभाव अंश (सुत) ग्यान द्वीप (लोक)
11 ) अष्टंगी अंश (सुत अथवा दुर्गा) मानसरोवर द्वीप मृत्यु (लोक)
12 ) अक्षर सुभाव अंश (सुत) पालंग द्वीप (लोक)
13 ) संतोष सुजन अंश (सुत) अक्षय द्वीप (लोक)
14 ) कदल ब्रह्म अंश (सुत) सुखसागर द्वीप (लोक)
15 ) दया पालन अंश (सुत) आदि द्वीप (लोक)
16 ) जलरंग अंश( सुत) पाताल पांजी द्वीप(लोक)
. आठवें अंश निरंजन प्रेम (सुत) काल पुरुष की तपस्या का फल
सतपुरुष (परमात्मा) के सोलह अंशो में निरंजन का नाम उल्लेखनीय है। सतपुरुष (परमात्मा) की निरंजन ने घोर तपस्या की जिसने सतपुरुष ने निरंजन को तीन लोक का राज दिया।
इसके उपरांत भी काल पुरुष ने और अधिक सतपुरुष का ध्यान लगाया। निरंजन की बढ़ती हुई भक्ति तप और लगन से सतपुरुष (परमात्मा) बडा प्रभावित हुआ।
सतपुरुष ने अपने प्रभाव से निरंजन में मोह उत्पन्न कर माया को प्रगट किया। जिसको अष्टांगी आधा तथा भवानी भी कहते हैं। मोह वश निरंजन का माया से स्त्री पुरुष जैसे सम्बन्ध हो गया।
जिसके फल: स्वरुप ब्रह्मा, विष्णु , और शिव ये तीन शक्ति शाली पुत्र उत्पन्न हुए। अपने तपस्या के फलस्वरूप सत्यपुरुष (परमात्मा) से निरंजन को सृष्टि रचने के साज भी मिल गए थे।
निरंजन( कालपुरुष) ने ब्रह्मा को रचना का, विष्णु को पालन का, व शिव को संहार का साज देकर तथा माया को ही सर्वेसर्वा ठहरा कर तथा साकार रूप में तीन लोक रचकर एवं ताना बाना डालकर स्वयं अपने लोक झांझरी द्वीप में निवास किया।
इस समय ब्रह्मा, विष्णु, और शिव की शैशवावस्था थी। निरंजन ने माया को वचन बध्द किया कि तुम मेरा पता मेरे पुत्रों को मत बताना।
जब ब्रह्मा विष्णु और शिव सयाने हुए तब माया (माता) से अपने पिता का पता पुछा तब माया(माता) ने अपने पुत्रों क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु , व महेश से कहा।
कि हे प्रिय पुत्रों!मै ही यदि अनादि जोग माया हुँ। सर्वेसर्वा हुँ। मेरे ऊपर कोई नहीं है। मैं ही सब रचना करती हूं। बिगाड़ती हुँ। इस प्रकार त्रिदेव पिता से वंचित रहे।
इतना होने पर निरंजन ने गायत्री की उत्पत्ति की और चार वेदों का उससे अपने प्रभाव से निर्माण करवाया और उन वेदों को समुद्र में छिपा दिया।
इधर माया ने तीन पुत्रियाँ क्रमशः शारदा, श्री तथा सती को उत्पन्न कर अपने पति निरंजन के संकेत से इन तीनों पुत्रियों को भी समुद्र में छिपाकर अपने पुत्रों (त्रिदेव)को समुद्र मंथन की आज्ञा दे दी।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सुरों असुरों के सहयोग से समुद्र मंथन कर वेद व इन तीनों कन्याओं क्रमशः शारदा(सरस्वती),(लक्ष्मी) तथा सत्तो (पार्वती) को ढूंढ निकाला साथ में कई और रत्न भी प्राप्त हुये।
सभी सामग्री को माया के सनमुख लाकर धर दिया। माया(माता) ने शारदा ब्रह्मा को, लक्ष्मी विष्णु को, तथा पार्वती शंकर को दे दी।
और चार वेद सिर्फ ब्रह्मा को बख्शीश किए। शेष जो मुक्ति का सूक्ष्म वेद जो सत्य पुरुष (परमात्मा) का उपदेश स्वरूप निरंजन को दिया गया था।
उसे निरंजन (कालपुरुष) ने छिपा लिया। निरंजन मोहवश तथा पराक्रम वश स्वाभिमानी हुआ और मन माना जाल रच -रच कर आपना प्रभाव जमा लिया।
ब्रह्मा विष्णु और शिव का इन तीनों कन्याओं से सम्बंध जुड़ जाने पर ये भी माया विषयासक्त हो गए और जिव जगत का विस्तार हो गया।
निरंजन और माया का अन्तदंशन से सम्बंध जुड़ा रहा। चार खानि चौरासी योनियों ताना बाना पुरा हुआ और तीनों लोक आबाद हुए इस संबंध में सतगुरु कबीर साहब कहते हैं कि _
अक्षय वृक्ष वह पुरुष हैं, निरंजन वाकी डार।
त्रिवेदी शाखा भये, पत्ता हुआ संसार
निरंजन ने फिर तो अपने जाल में जिव को फंसा लिया। और बहुत कष्ट देने लगा। सतपुरुष(परमात्मा) तक पहुंचने के सारे के सारे दरवाजे बंद कर दिये।
जीव अत्यंत दु:खी हुए। उनकी आर्तनाद सतपुरुष तक पहुंची। क्योंकि जीव भी तो सतपुरुष (परमात्मा) के आंश हैं। ये जीव सतपुरुष द्वारा काल को दी हुई है। जीव छटपटाने लगे।
.जिवहि दु:खी दुसह त्रित त्रिह बिलखंत।।
इन जीवों को आर्तनाद को सुनकर सतपुरुष को बङा चिंता हुई। सतपुरुष (परमात्मा) ने अपने ही स्वरूप में सर्वप्रथम जिन्दासाहब को जिन्हें ग्यानी जी।
भी कहते हैं। उनको निरंजन के प्रबोध देने भेजा। ये जिन्दा साहब ही सतगुरु कबीर साहब हैं। चारों युगों में लगातार आप सत्यपुरुष स्वरुप में काल का मानमर्दन करने तथा जिव को चेताने के लिए पधारते है।?
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