इब्राहिम, सुलतान, मोहम्मद साहब ईसा मसीह, दाउद, मूसा शंकराचार्य रामानुजनाचार्य आदि को कबीर साहब से मिलना
इब्राहिम, सुलतान, मोहम्मद साहब ईसा मसीह, दाउद, मूसा शंकराचार्य रामानुजनाचार्य आदि को कबीर साहब से मिलना
इब्राहिम सुलतान-
इब्राहिम सुलतान बालख बुखारा का राजा था। मालिक के प्रति अटूट श्रध्दा होने से कबीर साहब बालख बुखारा सुलतान के दरबार में पहुंचे।
सुलतान ने अजनबी रुहानी दौलत वाले फकीर को देखा पुछा। आप कैसे आए और आप कौन हैं। कबीर साहब ने उत्तर दिया में (सत्यपुरुष मालिक) का संदेश लेकर आया हूँ।
तुम्हारे मालिक के प्रति प्रबल जिज्ञासा देख कर तुम्हारे पास आया हूँ। सुलतान नतमस्तक हुआ और सद्गुरु कबीर साहब को पहिचान कर अपने कल्याण के लिए प्रार्थनीय की।
सद्गुरु कबीर साहब ने उसे सदुपदेश दिया। और अपने सत्संग से उसे प्रभावित किया। सुल्तान इब्राहिम का ह्रदय पवित्र हो गया। और उसे संसार असार लगने लगा।
और सत्यनाम सार है ऐसा बोध होते ही राज पाठ छोड़कर फकीर हो गया। और सद्गुरु के शिष्यता स्वीकार किया। और स्वयं कबीर साहब ने इब्राहिम सुलतान के त्याग भक्ति और वैराग्य का वर्णन करते हुए कहा
.सुलताना बालख बुखारे का
जाके खाना अजब सरहाना, मिसरी कंद छुहारे का।
.जाकी सुर्त है लगी कदंम सो, अल्लह पीर पियारे का।
.जाके सेज फुल सो बिछती, करते सुख तन सारे का।
.अब तो घास बिछावन लागे, मुठ्ठी एक गलियारे का।
.जाके संग कटक दल बादल, झंडा न्यारे न्यारे का।
.माल मुलक तज लई फकीरी, धन सो किन्हें बिचारे का।
.जो तन के चोला जो बनते, सवा टंक सब सारे का।
.सो तो बोझा उठावन लागे, मन दस गुदर भारे का।
.जा मुख चीज नेवाला खाते, करते जीव अहारे का।
.सोअब रुखा पावन लागे, टुकड़ा शाम साकारे का।
.आदम से हो गये औलिया, एक शब्द निरबारे का।
.कहें कबीर सुनो भाई साधु, फक्कर आद अखाड़े का।
.मोहम्मद साहब
हजरत मोहम्मद साहब बङे प्रभावशाली तथा शूरवीर खुदा के पैगम्बर माने जाते थे। तब तक मोहम्मद साहब का खुदा (निरंजन बाबा आदभ) ही था।
जब तक मोहम्मद साहब को कबीर साहब नहीं मिले थे। मौहम्मद साहब ने कट्टरता के साथ अपना धर्मप्रचार करना शुरू किया।
मौहम्मद का आदेश था कि या तो मुसलमान बनो वरना मौत को बुलावा दो। चौतरफा हजरत की धाक फैली । जीव दुखी हुए।
जीवों की आर्तनाद सतपुरुष परमात्मा तक पहुँची। तब सत्यपुरुष ने साहब कबीर को भेजा। मक्का में सद्गुरु कबीर साहब एकदम हजरत मोहम्मद साहब के पास पहुंचे।
हजरत ने रुहानी दौलत युक्त रोशन नुरवाला फकीर अपने जीवन में पहली बार देखकर अतम्भित हुआ। और परिचय पुछा। कबीर साहब ने मौहम्मद साहब को ललकार कर कहा।
रे! मौहम्मद तुम किसके हुक्म से अपना धर्म जीवों पर थोप रहे हो। ऐसा करना उचित नहीं है। में सत्यपुरुष परमात्मा का संदेश लेकर तुम्हारे पास आया हूँ।
मौहम्मद साहब ने उत्तर दिया मुझे लाहूत से ऐसा आदेश हुआ है। कबीर साहब ने कहा लाहूत काल का स्थान है। जिसे अक्षर पुरुष कहते हैं।
इस अक्षर पुरुष के आदेशों की पालन से। हे!हजरत तेरी खुश किस्मत नहीं है। मौहम्मद साहब वैसे विवेक थे। इसप्रकार का सद्गुरु का संदेश सुनकर कबीर साहब के चरणों में गिर पड़ा।
और क्षामा मांगते हुए। अपने उद्धार की याचना करने लगे। कबीर साहब ने मौहम्मद साहब की ह्रदय की पवित्रता देखकर समुचित शिक्षा दीक्षा दी।
और पांचवें कलमा का प्रबोध एवं सत्यलोक के दर्शन करा दिए।मौहम्मद साहब सद्गुरु कबीर साहब की कृपा से धन्य हो गये।
ईसा मसीह
पाश्चात्य संतों में ईसा मसीह का नाम विशेष उल्लेखनीय है। इनका जन्म ईश्वर की कृपा से एक कुंवारी कन्या मरियम के गर्भ से हुआ था।
कई परिस्थितियों से गुजर कर ये सयाने हुए। सुसस्कार क्रमिक विकास के फल स्वरुप इनकी लगन आत्माशान्ति तथा भजन के लिए संसारिक प्रपंचो से उदासीन रहते हुए हमेशा ही लगी रहती थी।
लेकिन इसकी पहुंच मौहम्मद साहब की तरह लाहूत अक्षर पुरुष तक ही थी। इस अक्षर पुरुष से इनको सब कुछ वरदान प्राप्त था। लेकिन इनको तन्मयता ध्यान लगन तथा श्रध्दा उच्चस्तर की थी।
सद्गुरु ने इनको इस प्रकार की लगन देख कर प्रबोधित किया। वर्तमान ईसा मसीह की स्थिति से अवगत कराकर इसके परे जीवन मुक्ति का मार्ग दर्शाया।
ओर सतपुरुष का भेद बताया। ईसा मसीह ने भी सद्गुरु के प्रति बहुत ही कृतज्ञयता प्रगट की तत्कालीन युग के ईसा मसीह धर्म के महान प्रवरक्त थे।
ऐसा जान कर काल उन पर छागया और अपने चंगुल में फंसा लिया। अल्पायु में ही ईसा मसीह को कुरुस में चढ़ा दी गई।
मुसा
मुसा का जन्म अफ्रीका महाद्वीप के उत्तरी भाग मिश्रदेश में फिरऊन के बन्धन से इब्राहीम की सन्तानो को छुङाने के लिए हुआ था। मुसा सयाने हुए ओर निमित्त कोल पुरा हुआ। सद्गुरु कबीर साहब ने मुसा को भी चेताया और मुक्ति संदेश दिया।
दाऊद और सुलेमान
दाऊद और सुलेमान ये दोनों सुल्तान क्रमशः पिता पुत्र थे। धार्मिक रुचि सन्त सेवा तथा परोपकार इनका जन्म जात स्वमाव था। स्वकल्याण के ये अत्यंत पिपासु थे। सद्गुरु कबीर साहब ने इनकी आत्मा कल्याण की परम मांगलिक भावना देख कर इन्हें शिक्षा दी थी
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इब्राहिम सुलतान-
इब्राहिम सुलतान बालख बुखारा का राजा था। मालिक के प्रति अटूट श्रध्दा होने से कबीर साहब बालख बुखारा सुलतान के दरबार में पहुंचे।
सुलतान ने अजनबी रुहानी दौलत वाले फकीर को देखा पुछा। आप कैसे आए और आप कौन हैं। कबीर साहब ने उत्तर दिया में (सत्यपुरुष मालिक) का संदेश लेकर आया हूँ।
तुम्हारे मालिक के प्रति प्रबल जिज्ञासा देख कर तुम्हारे पास आया हूँ। सुलतान नतमस्तक हुआ और सद्गुरु कबीर साहब को पहिचान कर अपने कल्याण के लिए प्रार्थनीय की।
सद्गुरु कबीर साहब ने उसे सदुपदेश दिया। और अपने सत्संग से उसे प्रभावित किया। सुल्तान इब्राहिम का ह्रदय पवित्र हो गया। और उसे संसार असार लगने लगा।
और सत्यनाम सार है ऐसा बोध होते ही राज पाठ छोड़कर फकीर हो गया। और सद्गुरु के शिष्यता स्वीकार किया। और स्वयं कबीर साहब ने इब्राहिम सुलतान के त्याग भक्ति और वैराग्य का वर्णन करते हुए कहा
.सुलताना बालख बुखारे का
जाके खाना अजब सरहाना, मिसरी कंद छुहारे का।
.जाकी सुर्त है लगी कदंम सो, अल्लह पीर पियारे का।
.जाके सेज फुल सो बिछती, करते सुख तन सारे का।
.अब तो घास बिछावन लागे, मुठ्ठी एक गलियारे का।
.जाके संग कटक दल बादल, झंडा न्यारे न्यारे का।
.माल मुलक तज लई फकीरी, धन सो किन्हें बिचारे का।
.जो तन के चोला जो बनते, सवा टंक सब सारे का।
.सो तो बोझा उठावन लागे, मन दस गुदर भारे का।
.जा मुख चीज नेवाला खाते, करते जीव अहारे का।
.सोअब रुखा पावन लागे, टुकड़ा शाम साकारे का।
.आदम से हो गये औलिया, एक शब्द निरबारे का।
.कहें कबीर सुनो भाई साधु, फक्कर आद अखाड़े का।
.मोहम्मद साहब
हजरत मोहम्मद साहब बङे प्रभावशाली तथा शूरवीर खुदा के पैगम्बर माने जाते थे। तब तक मोहम्मद साहब का खुदा (निरंजन बाबा आदभ) ही था।
जब तक मोहम्मद साहब को कबीर साहब नहीं मिले थे। मौहम्मद साहब ने कट्टरता के साथ अपना धर्मप्रचार करना शुरू किया।
मौहम्मद का आदेश था कि या तो मुसलमान बनो वरना मौत को बुलावा दो। चौतरफा हजरत की धाक फैली । जीव दुखी हुए।
जीवों की आर्तनाद सतपुरुष परमात्मा तक पहुँची। तब सत्यपुरुष ने साहब कबीर को भेजा। मक्का में सद्गुरु कबीर साहब एकदम हजरत मोहम्मद साहब के पास पहुंचे।
हजरत ने रुहानी दौलत युक्त रोशन नुरवाला फकीर अपने जीवन में पहली बार देखकर अतम्भित हुआ। और परिचय पुछा। कबीर साहब ने मौहम्मद साहब को ललकार कर कहा।
रे! मौहम्मद तुम किसके हुक्म से अपना धर्म जीवों पर थोप रहे हो। ऐसा करना उचित नहीं है। में सत्यपुरुष परमात्मा का संदेश लेकर तुम्हारे पास आया हूँ।
मौहम्मद साहब ने उत्तर दिया मुझे लाहूत से ऐसा आदेश हुआ है। कबीर साहब ने कहा लाहूत काल का स्थान है। जिसे अक्षर पुरुष कहते हैं।
इस अक्षर पुरुष के आदेशों की पालन से। हे!हजरत तेरी खुश किस्मत नहीं है। मौहम्मद साहब वैसे विवेक थे। इसप्रकार का सद्गुरु का संदेश सुनकर कबीर साहब के चरणों में गिर पड़ा।
और क्षामा मांगते हुए। अपने उद्धार की याचना करने लगे। कबीर साहब ने मौहम्मद साहब की ह्रदय की पवित्रता देखकर समुचित शिक्षा दीक्षा दी।
और पांचवें कलमा का प्रबोध एवं सत्यलोक के दर्शन करा दिए।मौहम्मद साहब सद्गुरु कबीर साहब की कृपा से धन्य हो गये।
ईसा मसीह
पाश्चात्य संतों में ईसा मसीह का नाम विशेष उल्लेखनीय है। इनका जन्म ईश्वर की कृपा से एक कुंवारी कन्या मरियम के गर्भ से हुआ था।
कई परिस्थितियों से गुजर कर ये सयाने हुए। सुसस्कार क्रमिक विकास के फल स्वरुप इनकी लगन आत्माशान्ति तथा भजन के लिए संसारिक प्रपंचो से उदासीन रहते हुए हमेशा ही लगी रहती थी।
लेकिन इसकी पहुंच मौहम्मद साहब की तरह लाहूत अक्षर पुरुष तक ही थी। इस अक्षर पुरुष से इनको सब कुछ वरदान प्राप्त था। लेकिन इनको तन्मयता ध्यान लगन तथा श्रध्दा उच्चस्तर की थी।
सद्गुरु ने इनको इस प्रकार की लगन देख कर प्रबोधित किया। वर्तमान ईसा मसीह की स्थिति से अवगत कराकर इसके परे जीवन मुक्ति का मार्ग दर्शाया।
ओर सतपुरुष का भेद बताया। ईसा मसीह ने भी सद्गुरु के प्रति बहुत ही कृतज्ञयता प्रगट की तत्कालीन युग के ईसा मसीह धर्म के महान प्रवरक्त थे।
ऐसा जान कर काल उन पर छागया और अपने चंगुल में फंसा लिया। अल्पायु में ही ईसा मसीह को कुरुस में चढ़ा दी गई।
मुसा
मुसा का जन्म अफ्रीका महाद्वीप के उत्तरी भाग मिश्रदेश में फिरऊन के बन्धन से इब्राहीम की सन्तानो को छुङाने के लिए हुआ था। मुसा सयाने हुए ओर निमित्त कोल पुरा हुआ। सद्गुरु कबीर साहब ने मुसा को भी चेताया और मुक्ति संदेश दिया।
दाऊद और सुलेमान
दाऊद और सुलेमान ये दोनों सुल्तान क्रमशः पिता पुत्र थे। धार्मिक रुचि सन्त सेवा तथा परोपकार इनका जन्म जात स्वमाव था। स्वकल्याण के ये अत्यंत पिपासु थे। सद्गुरु कबीर साहब ने इनकी आत्मा कल्याण की परम मांगलिक भावना देख कर इन्हें शिक्षा दी थी
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