शंकराचार्य
शंकराचार्य
भगवान् महावीर के बाद जैन धर्म तीव्र गति से भारत तथा अन्य देशों में फैलने लगा। और इतना फैला कि राजा-महाराजाओं जैनी ही हो गए।
साथ में राजाओं के साथ-साथ प्रजा भी जैन धर्म स्वीकार कर चुकी थी। राजा तथा प्रजा वाली बात हुई। जैन धर्म में पाखण्ड और अंध विश्वास में पङकर शुध्द सनातन धर्म विलुप्त होने लगा।
तब शंकराचार्य को आविभाव हुआ। शंकराचार्य स्वामी ने जैनियों की पोल खोलने शुरू कर दिया। और शंकराचार्य से सभी जैनी हारेऔर बन्दी बना लिया।
तत्कालीन सभी राजा महाराजाओं ने पुनः हिन्दू धर्म स्वीकार किया। वेसै जैन धर्म हिन्दू धर्म की शाखा है। मगर सनातन से कुछ इसके नियम प्रतिकूल है। इतना होने पर,
शंकराचार्य का प्रभाव बङने लगा। और वे जगदपुज्यनिय हुए। विश्व में प्रथम विद्वानों में माने जाने लगे। तब सद्गुरु कबीर साहब ने इनसे भेट की।
शंकराचार्य शास्त्रार्थ स्वभाव वाले थे। इन्होंने सद्गुरु कबीर साहब से ज्ञानगोष्ठी की।शंकराचार्य को बङा गर्व था। कि विश्व में मेरा मुकाबला करने वाला कोई भी नहीं है।
इसलिए शंकराचार्य का गर्व मोचन करने के लिए। ही सद्गुरु कबीर साहब इनसे मिले। आखिर में सद्गुरु कबीर साहब के सामने शंकराचार्य हार गए। और सहर्ष सद्गुरु कबीर साहब का उपदेश अंगीकार करते हुए।
अल्पायु में ही सद्गुरु कृपा से सत्यलोकगामी हो गए। इन्हें दिव्य दृष्टि मिल गई। लोगों का मन्नान है। कि शंकराचार्य कम आयु में ही चल बसे। इस सम्बंध में सद्गुरु कबीर साहब एक सुन्दर प्रमाण देते हैं। कि_
.जीवन तो थोड़ा भला,हरि का सुमिरणी होय।
लाख बशर का जीवणा,लखे धरै ना कोय।।
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