गरुङ व दुर्वासा को सद्गुरु कबीर साहब द्वारा उपदेश व अन्य राजॠषि प्रबोध
श्वपच सुदर्शन, गरुङ व दुर्वासा को सद्गुरु कबीर साहब द्वारा उपदेश व अन्य राजॠषि प्रबोध
काशी में एक भन्गी परिजन श्वपच सुदर्शन को कबीर साहब मिले। और उसे शिक्षा दीक्षा दी। महा भारत युध्द पाण्डवों की विजय हुई। और कौरव हार गए। भगवान् श्रीकृष्ण के नेतृत्व में पाण्डव थे।विजय के बाद धर्मराज युधिष्ठिर राजा बने। एक दिन धर्मराज को स्वप्न दिखाई दिया। जिसमें सिर कटे हुए शरीर दिखाई दिए । और सिर कटे चीखे मार रहे थे। चौतरफा पाप छाया दिखाई दिया। स्वप्न टूटने पर धर्मराज दुखी हो कर कृष्ण के पास जाकर बोले, महाराज रात को ऐसा पापयुक्त भयानक स्वप्न देखा।जिसमें मैं एकदम अशांत हो गया हूं। कृष्ण जी कहा धर्मराज बात तो बिल्कुल सत्य है। पाप तो तुमसे हुआ है। तब धर्मराज ने कहा कि हे प्रभु! प्रायश्चित है। मैं इन पापों से कैसे छुटूंगा। कृष्ण जी ने कहा तुम महायज्ञ करो पृथ्वी के भगवद भक्तों को भोजन करवाओ। तब अधर में सात घंटे बजेंगे तब समझना कि पापों से छुटकारा मिल गया।धर्मराज युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और यज्ञ करवाया। जिसमें करोड़ों साधु भक्त भोजन कर चुके मगर अधर शुन्य में एक भी टंकार नहीं बजा।तब निराशा होकर कृष्ण जी के पास जाकर बोले। महाराज यज्ञ पुरा होने जा रहे हैं, और अभी तक शुन्य घंटनाद बाजे ही नहीं। कृष्ण जी ने दिव्य दृष्टि से ध्यान लगाया ओर कहा। धर्मराज अपके यज्ञ में सद्गुरु भक्त ने भोजन नहीं किया है। तब धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा महाराज करोड़ों भक्त भोजन कर गए। क्या उनमें एक भी सच्चा भक्त नहीं।तो फिर बताओ भगवान् इस धाराधाम पर ऐसा सच्चा भक्त हैं। मैंने तो सब जगह डूँङी पिटवा दी थी, फिर वह आया क्यों नहीं उसे मेरे यज्ञ में आना चाहिए था।कृष्ण जी ने कहा राजन विवेक हंस सद्गुरु भक्त यज्ञों का या डुंडी पटवाने की परवाह नहीं करते वे तो भावानुग्रह से ही आ पाते हैं। इस सम्पूर्ण दृष्टि में सद्गुरु के हंस कबीर भक्त शिरोमणि श्वपच सुदर्शन है।जो भंगी(डोम) है। और काशी में रहते हैं। उसे बुलाकर भोजन करवाओ। तब जाकर तुम्हारा यज्ञ पुरण होकर आकाशीय गुप्त घंटा बजेगे। युधिष्ठिर ने भीम को बुलाने भेजा।भीम ने श्वपच जी से आकर कहा तुम्हें धर्मराज ने बुलाया है। श्वपच सुदर्शन ने तत्काल इन्कार कर दिया। और बोला हम राजा-महाराजाओं के यहां नहीं जाते। इनमें महाभिमान होता है।ऐसा सुनते ही बङा क्रोध हो गए,मन ही मन में सोचने लगे। ऐसे (डोम) को एक गदा मारु तो पताल में गाङ दु। श्वपच जी ने भीम के मन की बात जानकर तत्काल बोले, चलो मैं आपके साथ धर्मराज के यज्ञ में चलता हुँ। मेरे सुमिरणी पड़ी है। इसे ले आओ। मैं घर जाकर आ रहा हूँ। भीम ने तुरंत सुमिरणी को उठाने की चेष्टा की मगर भीम जैसे पराक्रमी की पुरी ताकत लगाने पर भी नहीं हिली।भीम लज्जित होकर तुरंत अपने सोचाे हुए, पर पश्चात् करते हुए लौट गए। और सारा हाल धर्मराज व कृष्ण जी से आकर कहा दिया।तब धर्मराज स्वयं श्वपच जी के पास जाकर विनय शील हुए। धर्मराज का सदभाव जानकर श्वपच जी चले। द्रोपदी ने विविध भांति के पकवान बनाकर श्वपच जी को परोसें। श्वपच जी ने सबको शामिल कर लिया, और खाने लगे।तब द्रोपदी ने सोचा यह आदमी कैसा निकम्मा है। जो स्वाद लेता ही नहीं। तब श्वपच जी ने द्रोपदी के मन की बात जान ली, और तीन ग्रास लेकर उठ गए।तब तक तीन घंटे ही बजे। धर्मराज ने कृष्ण जी से कहा,तब कृष्ण जी ने कहा, द्रोपदी की ग्लानि से भक्त ने भोजन नहीं किया। तब धर्मराज ने पुनः विनय युक्त हुए। और क्षामा मांगी तब जाकर श्वपच सुदर्शन जी ने प्रेम से प्रसाद लिया। आकाश में सात घंट बजे। धर्मराज का यज्ञ सम्पन्न होकर पापों से छुटकारा मिला। सद्गुरु के भक्तों का ऐसा प्रताप होता है।इन्हीं दिनों में सद्गुरु कबीर साहब से भेंट गरुङ जी से हुई। तथा उन्होंने गरुङ जी ब्रह्मा, विष्णु, शिव, माया व निरंजन काल रुप बधनयुक्त बताया। और जीवन मुक्ति के लिए।सतपुरुष तथा सत्यलोक का भेद बताया। गरुङ जी बङे आश्चर्यनि्वत हुए। और कृष्ण जी से जाकर कहा। तब कृष्ण जी ने कहा गरुङ जी सुनो कबीर साहब अलौकिक पुरुष हैं। साक्षात परब्रह्म है।और सच्चे सद्गुरु है। गरुङ जी अाप मुक्ति चाहते हो तो सद्गुरु से दीक्षा लेलो।कृष्णा जी के कहने पर गरूर जी को विश्वास हो गया और ठाट-बाट से चौका आरती करवा कर सभी मुख्य देवताओं और संत मुनियों को बुलाकर गुरु जी ने कबीर साहब से दीक्षा ग्रहण की और जीवन मुक्ति का सारा भेद प्राप्त कर सत्यपुरुष के दर्शन किए।गरुड़ जी की प्रतिष्ठा तीनो लोक में फैल गई और हंस कबीर हो गए। इनके बाद कबीर साहब ने दुर्वासा ऋषि को शिक्षा दी। दुर्वासाशिवा वतार थे। इनके बाद जग जीवन को प्रबोधित किया। जगजीवन को मातृगर्भ में चेताया था। इसके बाद राजा जगजीवन का सूखा बाग हरा कर दिया, तब जग जीवन प्रभावित होकर सद्गुरु का दास बना और शिक्षा दीक्षा ग्रहण करके अपना कल्याण किया। साथ में राजा जगजीवन की 12 रानिया और 4 पुत्र तथा अन्य मित्र कुल 500 जीवों का उद्धार जगजीवन के साथ हुआ।इनके पश्चात लोमस ऋषि,कस्टमऋषि, धनुष मुनि,गुप्तमुनि, दत्तात्रेय, नारद,सनकादिक,अमर सिंह, ऋषभनाथ, भुशुण्डी, भोगनृप, राजा यंगधीर, राजा भूपाल आदि को शिक्षा दीक्षा से सद्गुरु लाभान्वित कियाइसका प्रमाण कबीर मनसुर कबीर सागर तथा अन्य कई कबीरपंथी ग्रंथों में है तथा सबसे पख्ता एवं सत्य प्रमाण सदगुरु कबीर साहब के वचन है जो धनी धर्मदास जी को उपदेश देते समय तथा धर्मदास जी द्वारा पूछने पर चारों युग की सत्य, सद्गुरु कबीर साहब ने कही।
.मसि कागद छुयो नहीं, कलम गहै नहिं हाथ।
.चारों युग की वार्ता, मुखहि जनाई बात।।
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://need2knowssomthing.blogspot.com/2018/08/13.html?m=1
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