Why Kabir is real god, who is sadguru Kabir saheb,full biography of Shri sadguru Kabir saheb. सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग,कलयुग, के बारे (the god Kabir) ब्रम्हा, विष्णु, शंकर,काल नरिजंन (यंम),अष्टंगि (दुर्गा), ईसा मसीह, और मोहम्मद
करुणामयनाम साहब ने गिरिनार के राजा चंद्र विजय तथा रानी इन्द्रमती को प्रबोधित किया
सत्यलोक से सत्यपुरुष ने द्वापरयुग में काल माया के बन्धन से जीवों को छोड़ने के लिए ही स्वरूप में करुणामयनाम साहब को अवनीतल पर भेजा।
करुणामयनाम साहब गिरिनार पहुंचे। वह राजा चंद्र विजय की रानी इन्द्रमती बङी ही श्रध्दावान स्नेहमयी भगवद् भक्त तथा संतों की सेवा करने वाली थी। किसी भी संत को देख लेती या सुन लेती कि नगरी में कोई संत आया है। तो वह प्रेम पूर्वक उस साधु को बुलाकर सेवा बन्दगी करती। भाव भजन सत्संग में भी रानी की बहुत रुचि थी। करुणामयनाम साहब (कबीर साहब )ने रानी को मुक्ति पद की अधिकारिणी समझ कर रानी इन्द्रमती के समीप गये। रानी इन्द्रमती महल की अटारी पर बैठे -बैठे कुछ चिंतन कर रही थी। कि एक साधु वर्ष में श्वेत पुरुष अत्यंत स्वरुप वान तेजोमय मस्त से गुजर रहे थे। वे करुणामयनाम साहब ही थे।रानी ने दूर से ही दर्शन किए। उसकी आत्मा गद् गद् हो गई। और तत्काल अपनी दासी को बुलाने भेजा। दासी ने तुरंत करुणामयनाम साहब से कहा। कि- आपको यहां की रानी इन्द्रमती बुला रही है। करुणामयनाम साहब ने कहा कि- हम राजा महाराजाओं के यहां नहीं आते। राजमहलों राजाओं को राजमद् धनमद् तनमद् का उनमाद रहता है। इस लिए मैं नहीं आता। दासी निराश होकर लौट गई। ओर सारे समाचार रानी को कह दिया। रानी बङी भावुक थी उसमें अहंकार लवलेश मात्र ही नहीं था। उसने अपनी सारी मान मर्यादा तोड़ कर दासी को साथ ले लिया। और करुणामयनाम साहब के पास चली गई। बङे विनय पूर्वक साष्टांग प्रणाम करते हुए चरणों में लिपट गई। और प्रेमस्रु बहाकर कहने लगी -हे -दयानिधि! दया करो और मेरे घर आँगन में पधारो तथा मेरा कल्याण करो। करुणामयनाम साहब ने इन्द्रमती के सद्भाव को जान कर बङे प्रेम से रानी के राजमहल में चले गए। रानी ने चरण पखार कर चरणामृत लिया। और अपनी गति मुक्ति के लिए विनय करने लगी। सद्गुरु ने मुक्ति के लिए सारा भेद बता कर सत्यलोक के दर्शन करवाया। इतना सब कुछ होने पर रानी इन्द्रमती ने अपने पति राजा चंद्र विजय को दीक्षा देने की प्राथना सद्गुरु से की। सद्गुरु करुणामयनाम साहब ने रानी की प्राथना को स्वीकार कर लिया। रानी ने अपने पति राजा चंद्र विजय से सतपुरुष का सारा हाल कहा सुनाया। राजा चंद्र विजय भी जिज्ञासु परिजन थे। वे भी अपने कल्याण के पिपासु थे। तुरंत सद्गुरु करुणामयनाम साहब के चरणों में पहुंचे। सद्गुरु ने राजा रानी तथा अन्य परिवार परिजनों को पान परवाना देकर मुक्त कर दिया। अपने जीवों के कल्याणार्थ सतपुरुष स्वरुप करुणामयनाम साहब अनेकों बार द्वापरयुग में इस धाराधाम पर प्रगट हुए। ये सतपुरुष रहे हैं। स्वरुप ज्ञानी जी चारों युगों में प्रगट होते हैं। इनकी गर्भोत्पति नहीं होती है!
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