द्वापर युग में सत्य पुरुष स्वरुप में करुणामय नाम साहब का प्रगट होना
जब जब भी निरंजन (काल पुरुष) का प्रभाव बढ़ा उनके जीवों को अत्यन्त दुःखी पहुंचाया जानें लगा तथा धर्म में पाखण्ड फैला तब तब ही सत्यपुरूष (परमात्मा) ने अपने स्वरूप में ज्ञानी जी को भवसागर में सत्यलोक से भेजा ओर कहा की ज्ञानी जी जाओ काल का मान मर्दन करो जीवों को चेताओ एवं जीवों के लिए मुक्ति का द्वार खोल दो।
इसलिए ज्ञानी जी का समय-समय पर चारों ही युगों में आना हुआ। आप जब जब भी पधारे तब तब ही काल गिड़गिड़ाया और ज्ञानी जी के सामने नतमस्तक होकर हर आदेश को स्वीकार किया।
ये ज्ञानी जी सत्युग में सत्यसुकृत, त्रेता युग में मुनींद्र, द्वापर युग में करुणामय नाम तथा कलियुग में कबीर नाम से प्रख्यात हुए।
त्रेतायुग में सारी ब्यवस्था करके अनेक जीवों को चेताया,तथा सत्यलोक पहुंचाया। एवं काल को दबाकर मुनिन्द्रनाम साहब सत्यलोक पधार गए।
इनके सत्यलोक जाने के बाद द्वापरयुग प्रारंभ होता है। और काल जाल का ताना बाना फिर से फैलने लगा। काल के प्रधान काम, क्रोध, मद, लोभ, और मोह, ने प्रभुत्व जमाया।
धर्म में क्षेपक डाला जाने लगा। जीवों को फसाया जाने लगा। इस प्रकार जीवों को दुखी होता देख कर, सतपुरुष ने अपने ही स्वरूप में करुणामयनाम साहब ने धर्मराज युधिष्ठिर परम जिज्ञासु अर्जुन आत्मावत सर्व भूतेषु "यानि सब परमात्मा एक भाव से रम रहा है।
ऐसा उपदेश दिया जिसके फल :स्वरुप भगवान् श्रीकृष्ण चंद्र की महा भारतीय गदर की योजना ठप्प हो गई। सतपुरुष का कार्य सिर्फ चेताना है।
जिन्होंने भी सत्यपुरुष के उपदेशों को ह्रदयगम कर लिया उसका बेङा पार हो गया। लेकिन काल ने फिर अपने चक्रव्यूह में युधिष्ठिर और अर्जुन को फसा ही दिया। और महा भारत रचा ही दिया।
काल गति बङी बिलक्षण है। बिना सद्गुरु कि कृपा के तथा स्वयं की पूरी लगन के बिना काल से छुटना सहज नहीं है। सूक्ष्म वेद वाणी में कबीर कृष्ण गीता इसका प्रमाण है।readmore ://need2knowssomthing.blogspot.com/2018/08/11.html
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