Why Kabir is real god, who is sadguru Kabir saheb,full biography of Shri sadguru Kabir saheb. सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग,कलयुग, के बारे (the god Kabir) ब्रम्हा, विष्णु, शंकर,काल नरिजंन (यंम),अष्टंगि (दुर्गा), ईसा मसीह, और मोहम्मद
राजा जनक को त्रेतायुगाविभावक मुनींद्र नाम साहब द्वारा संबोधन ।।
त्रेतायुग में मुनींद्र नाम साहब जिवों के तथा कालपुरुष का मान मदन करने के लिए अनेकों बार प्रगट हुए। तत्कालीन जिज्ञासुओं, ऋषियों, मुनियों राजा-महाराजाओं, भावुक-भगतो तथा अधि भक्तों तथा अधिकारी अनेक जिवों को उन्होंने शिक्षा दी। जिन्होंने दास भाव से उनके उपदेशों को ह्रदयगम किया उनका तो उद्दार ही हो गया जो अहंकार बस रहे वे आज तक इसी भवसागर में भटका खा रहे है ।
भगवान नारायण ने भी अमुक्त मुनि श्री सुखदेव को बैकुंठ से पुनः संसार में जाकर राजा जनक से उपदेश प्राप्त करने को भेज दिया था । सुख देव मुनि भी जनक जी से शिक्षा दीक्षा ग्रहण कर धन्य धन्य हो गए थे। गर्भ योगेश्वर गुरु बिना लागे गुरु की सेव। राजा जनक गृहस्ती संत हो गए थे, जिन्हें कबीरी कहते हैं। यह सद्गुरु कृपा का ही फल था। सद्गुरु मुनींद्र नाम साहब जनकपुरी में जाकर राजा जनक को चेताया । राजा जनक सद्गुरु के देदीप्यमान स्वरूप को पहचानकर चरणों में गिर पड़े और कल्याण के लिए वंदना करने लगे। सतगुरु ने दया भाव से जनक जी को जीवन सुधार, जीवन मुक्ति तथा सारी ज्ञान का सारा भेद बता कर सत्य पुरुष का दर्शन कराया । कहैं कबीर विचारि के, झूठा लोहू चाह:।। ं इस प्रकार अतीत के धरातल की प्राप्ति सद्गुरु के बिना नहीं हो सकती। अतीत का धरातल सत लोक है। जो पंच विषयातीत, पंच भूतातीत, मायातीत तथा कालातीत है। इसलिए जनक जी पूर्ण साधक सद्गुरु कृपा से बने तथा भवसागर में विदेह पुरुष कहलाए। इसका प्रमाण सदगुरु कबीर साहब द्वारा सत्य सत्य कही हुई उनकी सूक्ष्म वेद की वारणी है।
त्रेतायुग में राजाओं में जनक जी का नाम बड़ा ही उल्लेखनीय है । परशुराम अवतार द्वारा धरती नि:क्षत्रिय बनाने पर भी क्षत्रिय राजा जनक जी का बाल बांका नहीं हुआ । यह सद्गुरु मुनिन्द्र नाम साहब की कृपा थी जिन्होंने जनक जी को विदेह स्वरूप बिना सूक्ष्म वेद के उपदेश के बिना सम्भव नहीं है तथा सूक्ष्म वेद के आदि प्रवक्ता सतगुरु कबीर साहिब ही है।
सद्गुरु मुनींद्र नाम साहब (कबीर साहब) के कृपा प्रसाद तथा शिक्षा दीक्षा के फल : स्वरुप जनक की तत्कालीन गुरु पद पर भी आसीन हुए थे। तीन लोक में जनक जी की प्रतिष्ठा थी।
कहीं कभी बैंकण्ठ से फेर दिया सुखदेव।।
जनक जी ने पूरी लगन से सतगुरु के उपदेशों का पालन किया, जिसके फलस्वरूप वो विजय स्वरूप होकर त्रिलोक विद कहलाए । उन्हें सत्य असत्य की पूर्ण रुप से पारख हो गई थी।
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