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त्रेतायुग प्रबोधक मुनिन्द्रनाम साहब ने लंका में आगमन

 

त्रेतायुग प्रबोधक मुनिन्द्रनाम साहब ने लंका में विचित्र भाट मन्दोदरी व रावण को चेतावनी दी 

त्रेतायुग में लंका का राजा रावण तत्कालीन प्रशासकों में पराक्रमी तथा देवत्व प्रसाद से विद्वान एवं चमत्कारी था। 


रावण ने काल वश अनीति अपनाकर सन्त महातओं देवताओं तथा जीवों को कष्ट देना शुरू किया।
 पुरा संसार रावण से भयभीत एवं त्रस्त था। जीवों की आर्तनाद (सतपुरुष परमात्मा) तक पहुँची तब सत्यपुरुष मुनिन्द्रनाम साहब के रूप में प्रकट हुए। 


और सर्वारम्भ में लंका में पहुंचे लंका के प्रवेश द्वार पर एक अत्यंत जिज्ञासु परमपारखी व प्रभुभक्त विचित्र भाट को मुनिन्द्रनाम साहब के दर्शन हुए।
श्वेत पुरुष प्रकाश पुन्ज स्वरुप साधु में मुनिन्द्रनाम साहब के दर्शन कर तत्काल चरणों में गिर पड़ा। और अपने कल्याण के लिए विनययुक्त हुआ।


 सद्गुरु मुनिन्द्रनाम साहब (कबीर साहब) ने दया कर विचित्र भाट को मुक्ति का संदेश दिया। और उसका कल्याण कर दिया।
 विचित्र भाट गद्-गद् हो गया। और तुरंत रावण की स्त्री मन्दोदरी को सत्यपुरुष मुनिन्द्रनाम साहब के आने की सूचना दे दी।


 रानी मन्दोदरी ने अत्यंत श्रद्धापूर्वक मुनिन्द्रनाम साहब का सम्मान किया। और दर्शन कर धन्य हो गई।
मुनिन्द्रनाम साहब के रूप को देखकर उसने साक्षात (परमात्मा)जैसे अनुभव किया। और विनययुक्त होकर अपने कल्याण की याचना की।
रानी मन्दोदरी के हाव, भाव, निष्ठा, लगन, श्रध्दा तथा विश्वास को देखकर सतगुरु ने उसे मुक्ति का भेद बता दिया।


 रानी मन्दोदरी ने मुनिन्द्रनाम साहब से शिक्षा दीक्षा ग्रहण कर उनकी बहुत - बहुत वन्दना स्तुति की। ओर अपने पति के उद्धार के भी साहब से याचना की।


 रावण को बुलाने के लिए मुनिन्द्रनाम साहब ने द्वारपाल को भेजा। द्वारपाल ने जाकर राजा रावण से कहा।
 कि आपको एक सिध्द साधु बुलाता है। रावण को अपने आप पर बहुत घमंड था। यह सुनकर बहुत क्रोधित हुआ। 


और कहा ऐ!द्वारपाल तु बङा बवेकूप है। तुमने उस साधु से कहा नहीं की तेरे बुलाने से रावण कैसे आएगा। मेरे दर्शन तो देवताओं को भी दुर्लभ है।
रावण से द्वारपाल ने कहा महाराज! वे सिध्द साधु ते बङे ही ओजस्वी श्वेत पुरुष प्रकाश पुन्ज स्वरुप हे।
मैंने तो आज तक इतना तपस्वी प्रभाव शाली साधु नहीं देखा। 


महराज। साक्षात परमात्मा जैसे नजर आते हैं। रानी मन्दोदरी भी उस समय वहां पहुंच गई।


 ओर उसने रावण को समझाया। हे पतिदेव पधारो! साक्षात सत्यपुरुष परमात्मा का अपने राजदरबार में पधारना हुआ है।


 अपने कितने आहोभागय है। कि आज अपने घर परमात्मा आए हैं। जाकर दर्शन करो। और उनके उपदेश को ग्रहण कर अपना उद्धार करलो।
परंतु रावण तो काल वश था। उस पर  निरंजन (कालपुरुष)पुरी तरह से छाया हुआ था।


 उसे अपने वरदान पराक्रम तथा विद्वता का भी बड़ा घमंड था। उसने द्वारपाल तथा अपनी रानी मन्दोदरी की बातों पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया।


ओर क्रोध वश गरजा तथा बोला भगवान् शंकर से बढ़कर और कोन सा परमात्मा है। जो सदैव मेरे पास रहते हैं। आभी दिखाता हुँ।
 कौन सा सिद्ध है।कितनी उसमें करामात है। जो मुझे बुलाता है। मुझे बुलाना उनके लिए मंहगा पङ जाएगा।


 बेचाराद्वारपाल व रानी मन्दोदरी घबरा गए। मुर्छा खाकर गिर गए। कि देखो साहिब का यह दुष्ट न मालूम क्या अपमान करेगा।
रावण तत्काल तलवार लेकर उठा। ओर मुनिन्द्रनाम साहब के पास जा पहुंचा। और गौर से देखा। कुछ उसकी अन्तरआत्मा ने सद्गुरु को पहचाना।
 लेकिन काल वश मुनिन्द्रनाम साहब पर टूट पड़ा और तलवार चलादी। रावण ने अनेकों प्रहार किए। लेकिन मुनिन्द्रनाम साहब का बाल भी बांका नहीं हुआ क्योंकि वे तो विदेह पुरुष थे। 


रावण थककर चुर हो गया। ओर लज्जित हो गया। तब रानी मन्दोदरी ने कहा हे स्वामी! अब तो समझो प्रत्यक्ष को क्या प्रमाण कि आवश्यकता है।
 देखो ये साक्षात सत्यपुरुष परमात्मा है। इसके चरणों में गिर जाओ। और दीक्षा ग्रहण कर अपना कल्याण कर लो।परंतु रावण पर कालपुरुष अहंकार मदादि छाए थे।
तत्काल बोला में सिवाय शिवजी को छोड़कर किसी के भी सामने नहीं झुकूंगा। मुझे सब कुछ शिवजी ने दे रखा है। बिचारी मन्दोदरी बङी निराश हुईं।


 और रो पीट कर रह गई। फिर सद्गुरु मुनिन्द्रनाम साहब (कबीर साहब) ने अपने प्रिय भक्त विचित्र भाट श्रध्दामयी रानी मन्दोदरी को शिक्षा सान्तवना तथा उपदेश दृढाकर अयोध्या की तरफ चल दिया।
 अयोध्या श्री रामचन्द्रजी को दो बार चेताया। और युक्ति बतायी, प्रथम रामचंद्र जी के वन वास से पूर्व जिसमें सेतुबन्ध निर्मित होसके इसलिए सत्यनाम की रेखा पर लिखने का आदेश दिया।

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