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सतयुग में त्रिदेवों का पप्रबोध सत्यसुकृत रुप में साहेब द्वारा



सत्यसुकृत साहब द्वारा खेमसरी का समुध्दर


सतयुग में सतगुरु कबीर साहेब का नाम  सत्यसुकृत साहेब जीवौं के दुख को दूर करने के लिए सत्यलोक से पधारे ।
कालवंश ब्रह्मा भी माया जाल रचने में संलग्न थे । सत्यसुकृत साहेब ने ब्रह्मा जी से भेंट की और ब्रह्मा को सत्यलोक का भेद बताया तथा जीवन मुक्ति का परिचय दिया। लेकिन नरिजन ने अपनी गुप्त शक्ति से ब्रह्मा की बुद्धि  पलट दी।
 ब्रह्मा पूरी तरह से सद्गुरु साहेब के उपदेशों को ह्रदयगम नहीं कर सके । ब्रह्मा के बाद सद्गुरु सत्यसुकृत साहेब विष्णु के पास पहुंचे।
विष्णु को भी सदुपदेशों से प्रभावित करने की चेष्टा की लेकिन विष्णु तो पूरी तरह से मायावश थे। माया कि विष्णु पर अशिम कृपा से विष्णु त्रिलोक पूज्य थे, जिसके अभिमान से सद्गुरु के उपदेशों को गहण नहीं कर सके और पुनः माया वह काल के जाल में फंसे हुए पालन-पोषण में लगे रहे।
विष्णु के बाद सद्गुरु सत्यसुकृत साहेब (कबीर साहेब) शंकर जी के पास पहुंचे। शंकर जी ने स्वेतपुरुष का स्वागत किया।
 और दर्शन कर धन्य -धन्य हुए। और विनययुक्त होकर सद्गुरु से उपदेश माँगा।
वेसै शिवजी सीधे - सादे -भोले स्वाभव ही के थे।
सद्गुरु सत्यसुकृत साहब शिवजी के हाव -भाव से प्रसन्न होकर शिवजी को सत्य लोक का सारा हाल कहा दिया।
और जीव बन्धन का कारण तथा जीवन मुक्ति का स्पष्ट भेद बता दिया।
शंकर जी सद्गुरु की मुक्तिदायिनी निर्मल वाणी सुन कर गद् -गद् हो गए।
और श्रध्दाभाव से सद्गुरु को वन्दना की। इन्हीं शंकर जी की वन्दना के स्वरुप सौ श्लोक आज भी सामवेद के ब्रह्मयम खण्ड में विद्ममान है
जिन्हें कबीर एकोत्तरी भी कहते हैं।
पार्वती और शंकर जी के सम्वाद रुप में यह एकोत्तरी हैं। जिसका आज भी शैवोपासक शिव शंकरी सम्प्रदायी नाथपन्थी दसनाम गुसांई आदि शिव भक्त पाठ कहते हैं।
और कबीर साहब को अनादि पुरुष मानते हैं। तथा अपने कर्मकांड में कबीर साहब की वेदी स्थापित करते हैं। यहां तक कि साधना मंत्रों में सद्गुरु कबीर साहब की साक्षी भी देते हैं।


 जिससे वे सिध्द बनते हैं। नाथपन्थी तो श्री गोरखनाथ के साथ-साथ कबीर साहब को पुजते है। और कहते हैं कि -
.कबीर गोरख एक है, कोई मत जानो दोय। कबीर अखण्ड तप धाम के, गोरख दीपक लोय


इस तरह भगवान् शंकर जी को सद्गुरु कबीर की वाणी में लिन होते देखकर काल पुरुष (निरंजन)तथा माया को बङी चिंता हुई।
 ये काल माया बङे प्रपंची है इन्होंने शंकरजी को विष धारण करवा दिया। और त्रिलोक में प्रसिद्धि फैलाकर पुन:अपने जाल में फंसा दिया।
इनके बाद सद्गुरु सत्यसुकृत साहब ने अनेक जीवों को चेताया। और काल माया के फन्द से छुङाकर सत्यलोक पहुंचाया।
 राजा धोंधल/राजा हारीत /तथा मथुरा की खेमसरी ग्वालिन के नाम उल्लेखनीय है। जिनका वर्णन अगले अध्यायों में है । 

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