सत्यसुकृत साहब द्वारा खेमसरी का समुध्दर
सत्यसुकृत साहब द्वारा खेमसरी का समुध्दर :
खेमसरी ग्वालिन थी। और वह मथुरा में रहती थी। पशु चराना दूध बेचना तथा गोबर बुहारा उसका कर्म था।लेकिन ह्रदय में परमात्मा के प्रति अटूट श्रध्दा थी।
उसका ह्रदय पवित्र था। सत्ययुग में खेमसरी ग्वालिन का प्रधान भाव जानकर ही तो सद्गुरु सत्यसुकृत साहब उसके पास पहुंचे।
ज्योकि औजस्ववान प्रकाशवान स्वत पुरुष सत्यसुकृत साहब (सद्गुरु कबीर साहब)के खेमसरी ने दर्शन किए। त्योही वह भाव विह्वल होकर चरणों में गिर गई। आंखों से स्नेह जल की वर्षा होने लगी।
और विनययुक्त होकर सद्गुरु से अपनी जीवन मुक्ति की याचना की। सद्गुरु उस दिन ग्वालिन पर बङे ही कृपालु हुए।
और उसके घर आँगन में सत्यलोक स्थापना कर उसे तथा उसके परिवार - परिजनों को मुक्त करने के लिए चौका आरती भी किये।
इस चौका आरती में खेमसरी सहित चालिस जीवों ने सद्गुरु के हाथ से पान परवाना लिया। सद्गुरु कृपा से वे सभी मुक्त हो गए।
उसका ह्रदय पवित्र था। सत्ययुग में खेमसरी ग्वालिन का प्रधान भाव जानकर ही तो सद्गुरु सत्यसुकृत साहब उसके पास पहुंचे।
ज्योकि औजस्ववान प्रकाशवान स्वत पुरुष सत्यसुकृत साहब (सद्गुरु कबीर साहब)के खेमसरी ने दर्शन किए। त्योही वह भाव विह्वल होकर चरणों में गिर गई। आंखों से स्नेह जल की वर्षा होने लगी।
और विनययुक्त होकर सद्गुरु से अपनी जीवन मुक्ति की याचना की। सद्गुरु उस दिन ग्वालिन पर बङे ही कृपालु हुए।
और उसके घर आँगन में सत्यलोक स्थापना कर उसे तथा उसके परिवार - परिजनों को मुक्त करने के लिए चौका आरती भी किये।
इस चौका आरती में खेमसरी सहित चालिस जीवों ने सद्गुरु के हाथ से पान परवाना लिया। सद्गुरु कृपा से वे सभी मुक्त हो गए।
Post a Comment