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त्रेतायुग में सद्गुरु कबीर साहब मुनिन्द्रनाम साहब के रूप में प्रगट हुए

त्रेतायुग में सद्गुरु कबीर साहब मुनिन्द्रनाम साहब के रूप में शिक्षा दीक्षा देते हुए


सत्ययुग के बाद त्रेतायुग की शुरुआत हुई। निरंजन (कालपुरुष) ने अपना हठ धर्म नहीं छोड़ा। वह अपने जाल में फंसा कर जीवों को कष्ट देता ही रहा ।

सत्ययुग में अनेक बार सत्यपुरुष स्वरुप में सत्यसुकृत साहब प्रगट हुए। काल का मानमर्दन किया।

अनेक जीवों को चेताया तथा अनेकों को सत्यलोक पहुंचाया। लेकिन निरंजन ने अपना हठ नहीं छोड़ा।

और त्रेतायुग में भी जीवों का संहार करता रहा। उलझाता रहा। और कष्ट देना शुरूकर दिया।

 जीवों का आर्तनाद सुनकर सतपुरुष मुनिन्द्रनाम साहब के रूप में त्रेतायुग में प्रगट हुए। स्मरण रहे सतपुरुष सतयुग में जब-जब भी प्रगट हुए।

तब ही सत्यसुकृत नाम साहब से प्रख्यात हुए। तथा त्रेतायुग में सत्यपुरुष (परमात्मा) जब-जब भी प्रगट हुए।

तब-तब ही मुनिन्द्रनाम साहब के नाम से प्रगट हुए। इसी तरह द्वापरयुग में करुणामयनाम साहब तथा कलियुग में सद्गुरु कबीर साहब के नाम से प्रगट होते हैं।

अस्तु! त्रेतायुग में मुनिन्द्रनाम साहब अनेकों बार जीवोध्दार निमित्त प्रगट हुए। और कालपुरुष का मानमर्दन किया।

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